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150+ Best Munawwar Rana Shayari in Hindi -DSQ

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मुनव्वर राना उर्दू के एक प्रसिद्ध शायर, कवि एवं साहित्यकार हैं | मुनव्वर राना उर्दू अदब के एक मक़बूल नाम हैं | उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मुनव्वर राना ने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखे हैं। उनके रचनाओं का ऊर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। पेश हैं उनके लिखे बेहतरीन शेर

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Munawwar Rana Shayari in Hindi

जितने बिखरे हुए कागज़ हैं ‌वो यकजा कर ले,
रात चुपके से कहा आके हवा ने हम से।

तुम्हें भी नींद सी आने लगी है ,थक गए हम भी
चलो हम आज ये किस्सा अधूरा छोड़ देते हैं।

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है

आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ

चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन,
बच्चों ने खिलौनों की तरफ देख लिया था।

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से,
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही

ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी मां सजदे में रहती है।

मां पर मुनव्वर राना की मशहूर शायरी | Munawwar Rana Shayari on Maa

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू,
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

अभी जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं घर से जब निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है।

मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ
मैं बातें भूल भी जाऊं तो लहजे याद रखता हूँ

अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है

दिन भर की मशक्कत से बदन चूर है लेकिन,
मां ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है।

तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता,
तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हमने।

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती |

Munawwar Rana Quotes & Status in Hindi

इतनी चाहत से ना देखा कीजिए महफ़िल में आप
शहर वालों से हमारी दुशमनी बढ़ जायेगी |

थकान को ओढ़कर बिस्तर में जा के लेट गए
हम अपनी क़ब्र–ए–मुक़र्रर में जा के लेट गए |

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया

मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है

कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे.
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था

नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है

बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी 

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

Munawwar Rana Shayari and Thoughts

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा

जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है

सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते

तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं

कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है

ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए 

एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना

हमारा तीर कुछ भी हो निशाने तक पहुंचता है
परिन्दा कोई मौसम हो ठिकाने तक पहुंचता है

Munawwar Rana Famous Shayari

कल अपने आपको देखा था मां की आंखों में,
यह आइना हमें बूढ़ा नहीं बताता है।

बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था

मैं इंसान हूँ बहक जाना मेरी फितरत में शामिल है
हवा भी उसको छु के देर तक नशे में रहती है

ये सोच कर कि तेरा इंतज़ार लाज़िम है
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा

हंस के मिलता है मगर काफी थकी लगती हैं,
उसकी आंखें कई सदियों की जगी लगती हैं।

फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं।

शहर के रस्ते हों चाहे गांव की पगडंडियां,
मां की उंगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा।

कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा

घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं।

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Munawwar Rana Shayari On Life

मेरी मुट्ठी से ये बालू सरक जाने को कहती है,
अब ये ज़िन्दगी मुझसे भी थक जाने को कहती है।
जिसे हम ओढ़ कर निकले थे आगाज़े जवानी में
वो चादर ज़िन्दगी की अब मसक जाने को कहती है।

कहानी ज़िन्दगी की क्या सुनाएं अहले महफ़िल को,
शकर घुलती नहीं और खीर पक जाने को कहती है।
मैं अपनी लड़खड़ात से परेशां हूं मगर पोती
मेरी उंगली पकड़ कर दूर तक जाने को कहती है।

सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं

एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया

इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे

सिसकियां उसकी न देखी गईं मुझसे राना
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते

हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए

मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता

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